Friday, January 11, 2013

'सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-२०११' कहता है...


राष्ट्र पिता का मूल्यांकन फिर से किया जाए ? क्यूंकी वर्तमान भारत ज्यादा पढ़ा लिखा और सजग है !

--1-- क्या राष्ट्रीय पिता उसे कहते है जो किसी एक विशेष समुदाय के प्रति तुष्टिकरण की निति रखता हो, --2-- ऐसे अहिंसा के पुजारी जिसके मंदिर मे महीने मे १० लाख लोग मौत के काल मे समां गए, --3-- अगर इसे महात्मा कहते है तो वह १० लाख लोगो की मौते नहीं होती ! उसे पता थी यह बात की एसा हो जायेगा, क्योकि वह तो महात्मा थे ना ? --4-- भ्रह्मचर्य का सिर्फ अभ्यास कोई भला ६० साल तक करता है ? उसके प्रयोग करता हो, भ्रह्मचर्य का पालन जन्म से लागु होता है, गाँधी ने इसकी अलग ही परिभाषा लिख डाली --5-- एसा महात्मा जो पाकिस्तान को ५५ करोड़ जेसी भरी भरकम राशी ( आज के समय मे २०,००० करोड़ ) देने के लिए अनसन पर बैठा हो, --6-- एसा "राष्ठ्रपिता" जो जनता को सिखाये की कैसे अपनी मांगो के लिए हड़ताल करनी चाहिए, ये हाल आज भी है, लोग हड़ताले करते है रोज, बैंक की हड़ताल, शिक्षको की हड़ताले... वगेरह --7-- एसा महात्मा जो सरकार पर मस्जिद बनवाने के लिए दबाव बनाता हो और सोमनाथ मंदिर के लिए पैसे मांगने पर उसे व्यर्थ का सरकारी खर्च मानता हो ! --8-- इस महात्मा को सिर्फ भारत के भूखे नंगो को इकठ्ठा करना आता था जिसकी कला आज के रौल विंसी, अंतोनियो, बियंका मे भी है ( राहुल गाँधी, सोनिया, प्रियंका ) --9-- कहते है की गाँधी तपती धुप मे यात्रा करते थे तो उस ज़माने मे क्या किसान घर मे छत के निचे खेती बड़ी करते थे ? , और क्या साथ मे मारुती गाड़ी रखते थे ? कम ही ऐसे थे जो गाड़ी / बेलगाडी से यात्रा करते थे --10-- कोंग्रेस के द्वारा घोषित तथाकथित "राष्ट्रपिता" क्या भारत इतिहास के अकेले भारतीय थे जो भ्रह्मचर्य की बाते करते थे, उनके भी संताने थी और भ्रह्मचर्य का अखंड पालन करने वाले विवेकानंद क्यों नहीं राष्ट्रपिता थे ? वो तो गाँधी से १०० गुना सच्चे देश भक्त थे और दुनिया उन्हें आदर भाव देती है है इसी किताब जिसमे उनके बारे मे गलत लिखा है ? पूरी दुनिया मे उन्होंने भारत का सही मान बढाया था ! --11-- लेकिन क्या है ना की स्वामी विवेकानंद जी जैसे धर्म पुरुष से कोई सत्ता हासिल नहीं होती थी इसलिए "गाँधी" ब्रांड का सहारा लिया कोंग्रेस ने ! --12-- भारतवासियों को हमेशा दुसरे गाल पर भी खाने की सलाह देने वाले गांधीजी के कोंग्रेसी अनुयायी कितने हत्यारों ( गुरु, मदनी, कसाब आदि ) को पनाह देती है --13-- अगर ऐसे महात्मा कहा जाता है तो नाथूराम जेसे तथाकथित "हत्यारा" जिसकी अस्थिया आज भी पुणे में पड़ी है, उसने एक दिन कहा था की "मेरी अस्थिया उस सिन्धु नदी मे बहा देना जिस दिन सिन्धु नदी भारत झंडे के तले बहने लगे ! " ऐसा भला क्यों कहा ? जब उनका मानसिक संतुलन का "टेस्ट" हुआ था तो उनका स्वास्थ्य एकदम ठीक था सामान्य मनुष्य की तरह ! फिर उनको कोंग्रेस की किताबो मे मानसिक रोगी क्यों कहा ? --14-- ये कोंग्रेस के द्वारा घोषित महात्मा है, जिन्होंने पुरे विश्व में अंग्रेजी साहित्य के माध्यम से अपने सत्ता के तृष्णा के लिए किसी तथाकथित "महात्मा" का सहारा लिया जिसने हमेशा बोस, पटेल, भगत सिंह, उस्फफ़ उल्लाह खान, राजगुरु की नीतियों का विरोध किया और उन्हें देश द्रोही तक कह दिया --15-- आज समय गया है की नई पीढ़ी कोंग्रेसी किताबो के इतिहास से परे सच्चाई जानने का प्रयास करे, और सुनिश्चित करे की राजगुरु, भगत सिंह, अबुल कलम आजाद, उल्लाह खान, बोस, पटेल , गोडसे आदि देश भक्त थे या फिर ये तथाकथित "महात्मा" भारत के नोट पर शोभा बनने के लायक ! --16-- हमने जहा से इस तथाकथित राष्ट्रीय पिता के बारे मे कोंग्रेसी इतिहास से पढ़ा - सुना, और उसे राष्ट्रीय पिता का दर्जा दे दिया , वन्दे मातरम ! --17-- गांधी "जी" (?) ने एक बार कहा था कि यदि गो-हत्या देख कर दुःख होता है तो उसके विरोध में अपनी जान दे दो लेकिन गो-हत्या करने वाले को क्षति मत पहुँचाओ. वाह रे गाँधी वाह! मतलब गायें तो मारी हीं जाएँ और साथ में गोपालक भी मरे. तो लक्ष्य किसका सधा ? मुसलमानों को हम गाय के साथ स्वयं को भी समर्पित करें ! --18-- आजकल राहुल गांधी जैसे अज्ञानी को भीमहन बना देती है मीडिया नाम की ब्रांडिंग अजेंसी, वैसे ही गांधी को उस समय एक ब्रांडिंग अजेंसी ने ब्रांड बनाया था घर घर तक ! आप ही बताइये उस एजेंसी की मेहनत व्यर्थ जाने वाली थी क्या (क्यूंकी उस समय लोगो ज्यादा अनपढ़ थे ) यही कारण था की भगतसिंह , आजाद, बॉस जैसे लोगो के साथ पढेलिखे लोग थे ? आज की हिन्दू जनता से यह अवश्य पूछना / सर्वे करना चाहिए की उसका राष्ट्रपिता कैसा हो ना की एक पार्टी किसी अयोग्य व्यक्ति को राष्ट्र-पिता जैसा महान दर्जा दें, हमारा राष्ट्र से मतलब भारत और भारत का राष्ट्र पिता गाँधी जेसा हो तो फिर स्वामी विवेकानंद, गौतम बुद्ध, दयानंद सरस्वती, महर्षि अरविन्द, सुभाष चन्द्र बोश, भगत सिंह, आजाद, टोपे, मंगल पांडे, वीर सावरकर ( इन्हें तो कोंग्रेस आतंकवादी कहती है ) , राज गुरु, अस्फफ़ उल्लाह खान, राणा प्रताप, शिवाजी, भामा शाह, राणा सांगा, बिस्मिल राणा कुम्भा, रामदास, तुका राम, संत कबीर, रैदास, राम कृष्ण परमहंस, राम, कृष्ण, अर्जुन, भीम, भरत, भीष्म पिता, परशुराम, युधिष्ठिर, पृथ्वी राज चौहान ( भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट जिसने मोहम्मद गौरी जेसे नीच, आतंकवादी को १४ बार परस्त किया) , हनुमानजी , राजा हर्षवर्धन ( ऐसे महान सम्राट के बारे मे शायद मेक-डोनाल्ड मे जाने वाला क्या जाने ?) , अशोक क्या सिर्फ कहानिया मात्र थी ? क्या ये सभी गाँधी से कम महान थे ... राणा सांगा अगर अहिंसा नहीं करते और आतंकवादियों को नहीं खदेड़ते तो वे राणा सांगा नहीं कहलाते, अच्छा हुआ की गाँधी जैसे "महापुरुष" ने इस मुर्दी सदी मे मुर्दे लोगो के संग अवतार लिया ! आज के ज़माने मै गाँधी को महत्व क्यों दिया जा रहा है इसका एक कारण है की ओबामा गाँधी को मानता है ( मानने का ढोंग करता है , काले अंग्रेजो को बेवकूफ बनाने के लिए )------नोट: मेरा गाँधी के साथ कोई जाती दुश्मनी नहीं है, मेरे ह्रदय मे सिर्फ हमारी हजारो साल पुरानी सभ्यता का गौरव है बस ! इसलिए मुझे घृणा है ऐसे लोगो से जो राष्ट्र-पिता शब्द का अपमान करते है और उस शब्द का मतलब नहीं समझते , और किसी एरे गेरे को राष्ट्र पिता बना देते है, मुझे आपत्ति है इस शब्द से मेरे भारत का पिता ऐसा नहीं हो सकता है ! आप को पूरा अधिकार है की आप इस तथाकथित महात्मा के बारें मे जाने इन्टरनेट पर और सच्चे साहित्य

'सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-२०११' कहता है...
2011-07-01 03:35 AM
को ताजा खबर पर प्रकाशित

1- '
बहुसंख्यक' हत्यारे, हिंसक और दंगाई प्रवृति के होते हैं। (विकीलीक्स के खुलासे में सामने आया था कि देश के बहुसंख्यकों को लेकर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की इस तरह की मानसिकता है।) जबकि 'अल्पसंख्यक' तो दूध के दुले हैं। वे तो करुणा के सागर होते हैं। अल्पसंख्यक समुदायक के तो सब लोग अब तक संत ही निकले हैं।
2-
दंगो और सांप्रदायिक हिंसा के दौरान यौन अपराधों को तभी दंडनीय मानने की बात कही गई है अगर वह अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्तियों के साथ हो। यानी अगर किसी बहुसंख्यक समुदाय की महिला के साथ दंगे के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति बलात्कार करता है तो ये दंडनीय नहीं होगा।
3-
यदि दंगे में कोई अल्पसंख्यक घृणा वैमनस्य फैलता है तो यह अपराध नहीं माना जायेगा, लेकिन अगर कोई बहुसंख्यक ऐसा करता है तो उसे कठोर सजा दी जायेगी। (बहुसंख्यकों को इस तरह के झूठे आरोपों में फंसाना आसान होगा। यानी उनका मरना तय है।)
4-
इस अधिनियम में केवल अल्पसंख्यक समूहों की रक्षा की ही बात की गई है। सांप्रदायिक हिंसा में बहुसंख्यक पिटते हैं तो पिटते रहें, मरते हैं तो मरते रहें। क्या यह माना जा सकता है कि सांप्रदायिक हिंसा में सिर्फ अल्पसंख्यक ही मरते हैं?
5-
इस देश तोड़क कानून के तहत सिर्फ और सिर्फ बहुसंख्यकों के ही खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। अप्ल्संख्यक कानून के दायरे से बाहर होंगे।
6-
सांप्रदायिक दंगो की समस्त जवाबदारी बहुसंख्यकों की ही होगी, क्योंकि बहुसंख्यकों की प्रवृति हमेशा से दंगे भडकाने की होती है। वे आक्रामक प्रवृति के होते हैं।
- दंगो के दौरान होने वाले जान और माल के नुकसान पर मुआवजे के हक़दार सिर्फ अल्पसंख्यक ही होंगे। किसी बहुसंख्यक का भले ही दंगों में पूरा परिवार और संपत्ति नष्ट हो जाए उसे किसी तरह का मुआवजा नहीं मिलेगा। वह भीख मांग कर जीवन काट सकता है। हो सकता है सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का दोषी सिद्ध कर उसके लिए जेल की कोठरी में व्यवस्था कर दी जाए।
- कांग्रेस की चालाकी और भी हैं। इस कानून के तहत अगर किसी भी राज्य में दंगा भड़कता है (चाहे वह कांग्रेस के निर्देश पर भड़का हो।) और अल्पसंख्यकों को कोई नुकसान होता है तो केंद्र सरकार उस राज्य के सरकार को तुरंत बर्खास्त कर सकती है। मतलब कांग्रेस को अब चुनाव जीतने की भी जरूरत नहीं है। बस कोई छोटा सा दंगा कराओ और वहां की भाजपा या अन्य सरकार को बर्खास्त कर स्वयं कब्जा कर लो।

सोनिया गांधी के नेतृत्व में इन 'देशप्रेमियों' ने 'सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक-२०११' को तैयार किया है।

. सैयद शहबुदीन
. हर्ष मंदर
. अनु आगा
. माजा दारूवाला
. अबुसलेह शरिफ्फ़
. असगर अली इंजिनियर
. नाजमी वजीरी
. पी आई जोसे
. तीस्ता जावेद सेतलवाड
१०. एच .एस फुल्का
११. जॉन दयाल
१२. जस्टिस होस्बेट सुरेश
१३. कमल फारुखी
१४. मंज़ूर आलम
१५. मौलाना निअज़ फारुखी
१६. राम पुनियानी
१७. रूपरेखा वर्मा
१८. समर सिंह
१९. सौमया उमा
२०. शबनम हाश्मी
२१. सिस्टर मारी स्कारिया
२२. सुखदो थोरात
२३. सैयद शहाबुद्दीन
२४. फरह नकवी
मैकाले नाम हम अक्सर सुनते है मगर ये कौन था?
इसके उद्देश्य और विचार क्या थे कुछ बिन्दुओं
की विवेचना का प्रयास हैं करते .
मैकाले: मैकाले का पूरा नाम था थोमस
बैबिंगटन मैकाले .. अगर ब्रिटेन के नजरियें से देखें
...
तो अंग्रेजों का ये एक अमूल्य रत्न था .. एक
उम्दा इतिहासकार, लेखक प्रबंधक, विचारक
और देशभक्त ..इसलिए इसे लार्ड
की उपाधि मिली थी और इसे लार्ड मैकाले
कहा जाने लगा ..अब इसके महिमामंडन को छोड़
मैं इसके एक ब्रिटिश संसद को दिए गए प्रारूप
का वर्णन करना उचित समझूंगा जो इसने भारत
पर कब्ज़ा बनाये रखने के लिए दिया था ...
फ़रवरी १८३५ को ब्रिटेन
की संसद में मैकाले की भारत के
प्रति विचार और योजना मैकाले
के शब्दों में ..
"
मैं भारत के कोने कोने में
घुमा हूँ..मुझे एक
भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई
दिया ,
जो भिखारी हो ,जो चोर हो,
इस देश में मैंने इतनी धन दौलत
देखी है ,इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श
और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं,की मैं
नहीं समझता की हम कभी भी इस
देश को जीत पाएँगे ,जब तक
इसकी रीढ़
की हड्डी को नहीं तोड़ देते
जो इसकी आध्यात्मिक और
सांस्कृतिक विरासत है .
और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूँ की हम
इसकी पुराणी और पुरातन
शिक्षा व्यवस्था ,उसकी संस्कृति को बदल
डालें,क्युकी अगर भारतीय सोचने लग गए
की जो भी बिदेशी और अंग्रेजी है वह
अच्छा है ,और उनकी अपनी चीजों से बेहतर
है ,तो वे अपने आत्मगौरव और
अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे
बनजाएंगे जैसा हम चाहते हैं .एक पूर्णरूप से गुलाम
भारत "
कई सेकुलर बंधू इस भाषण
की पंक्तियों को कपोल कल्पित
कल्पना मानते है .. अगर ये कपोल कल्पित
पंक्तिया है, तो इन काल्पनिक
पंक्तियों का कार्यान्वयन कैसे हुआ??? सेकुलर
मैकाले की गद्दार औलादे इस प्रश्न पर बगले
झाकती दिखती है ..और कार्यान्वयन कुछ इस
तरह हुआ की आज भी मैकाले
व्योस्था की औलादे छद्म सेकुलर भेष में यत्र तत्र
बिखरी पड़ी हैं ..
अरे भाई मैकाले ने क्या नया कह दिया भारत के
लिए ??,भारत इतना संपन्न था की पहले सोने
चांदी के सिक्के चलते थे कागज की नोट
नहीं ..धन दौलत की कमी होती तो इस्लामिक
आतातायी श्वान और अंग्रेजी दलाल
यहाँ क्यों आते ..लाखों करोड़ रूपये के हीरे
जवाहरात ब्रिटेन भेजे गए जिसके प्रमाण आज
भी हैं मगर ये मैकाले का प्रबंधन ही है की आज
भी हम लोग दुम हिलाते हैं अंग्रेजी और
अंग्रेजी संस्कृति के सामने ..हिन्दुस्थान के बारे
में बोलने वाला संकृति का ठेकेदार
कहा जाता है और घृणा का पात्र होता है इस
सभ्य समाज का ..
शिक्षा व्यवस्था में मैकाले प्रभाव : ये तो हम
सभी मानते है
की हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारे समाज
की दिशा एवं दशा तय करती है ..बात १८२५ के
लगभग की है..जब ईस्ट इंडिया कंपनी वितीय रूप
से संक्रमण काल से गुजर रही थी और ये संकट उसे
दिवालियेपन की कगार पर
पहुंचा सकता था ..कम्पनी का काम करने के
लिए ब्रिटेन के स्नातक और कर्मचारी अब उसे
महंगे पड़ने लगे थे ..
१८२८ में गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक भारत
आया जिसने लागत घटने के उद्देश्य से अब
प्रसाशन में भारतीय लोगों के प्रवेश के लिए
चार्टर एक्ट में एक प्रावधान
जुड़वाया की सरकारी नौकरी में धर्म
जाती या मूल का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा..
यहाँ से मैकाले का भारत में आने
का रास्ता खुला ..अब अंग्रेजों के सामने
चुनौती थी की कैसे भारतियों को उस
भाषा में पारंगत करें जिससे की ये अंग्रेजों के पढ़े
लिखे हिंदुस्थानी गुलाम की तरह कार्य कर
सकें ..इस कार्य को आगे बढाया जनरल
कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन के अध्यक्ष थोमस
बैबिंगटन मैकाले ने ....मैकाले की सोच स्पष्ट
थी...जो की उसने ब्रिटेन की संसद में
बताया जैसा ऊपर वर्णन है..
उसने पूरी तरह से भारतीय
शिक्षा व्यवस्था को ख़तम करने और
अंग्रेजी (जिसे हम मैकाले
शिक्षा व्यवस्था भी कहते है)
शिक्षा व्यवस्था को लागु करने का प्रारूप
तैयार किया ..
मैकाले के शब्दों में:
"
हमें एक हिन्दुस्थानियों का एक ऐसा वर्ग
तैयार करना है जो हम अंग्रेज शासकों एवं उन
करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिये का काम
कर सके , जिन पर हम शासन करते हैं। हमें
हिन्दुस्थानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार
करना है , जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय

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