“तुम धन्य हो”
दिग्विजय सिंह
“तुम धन्य हो” दिग्विजय सिंह। धन्य है तुम्हारी स्वामिभक्ति;जो स्वामी के दुत्कारने के बावजूद भी श्वान-निष्ठा नहीं छोड़ती; अपितु पुच्छ हिल्लन और बारम्बार पद चट्टन से अपने स्वामी को रिझाती रहती है। "पर एक अच्छे श्वान का एक गुण तुममे नहीं है"; वह सज्जन और दुर्जन में भेद जान लेता है और केवल दुर्जन के विरोध में ही भौंकता है, पर तुम भेद तो जानते हो लेकिन सज्जन के विरोध में भौंकते हो । पर ये भी सच है; कि अगर ये गुण तुम पा लो तो कैसे अपनी विशिष्टता सिद्ध कर पाओगे। धन्य है; तुम्हारी देश-समाज- संस्कृति,सज्जन "विरोध" के प्रति निष्ठा को। तुम्हारे जैसे दुष्ट शिरोमणि,गद्दार शिरोमणि, असुर शिरोमणि सदियों में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं। अपना और अपने कुल-खानदान का नाम "मोटे स्याह अक्षरों में" इतिहास में लिखवा जाते हैं। कुल-वंश का गौरव तो सभी बनना चाहते हैं पर कुल कलंक बनने का साहस भी कोई एकाध ही सदियों में कर पाता है। आखिर कौन ऐसा साहस कर पाता है ; कि उसके आने वाली पीढ़ीयां गद्दारों के नाम से जानी जाएँ। वैसे तो तुम्हारे समुह (पार्टी) में एक से बढ़ कर एक "श्वान निष्ठीय आदर्श" वाले व्यक्तित्व हुए हैं और ; और वर्तमान में भी हैं,जाने क्यों उन्होंने तुम्हें अकेला छोड़ा हुआ है इसीलिए तुम जो आदर्श प्रस्तुत कर रहे हो वह धन्य है । धन्य हैं तुम्हारे माता -पिता जहाँ भी (नर्क में ही )होंगे कैसे अपने कुल कलंक पुत्र को देख रहे होंगे कि कैसे उनका पुत्र सिंह हो कर भी किस सरलता से श्वान- प्रवृत्ति को पूर्ण रूप से निभा रहा है। पिता याद कर रहे होंगे कि उनके कुल में कोई इतना बड़ा गद्दार कभी हुआ या नहीं आखिर किस से बीज धारण किया तुम्हारी माता ने; वह भी जानना चाह रहे होंगे ।
दिग्विजय सिंह ! एक और सिंह आजकल आवारा श्वान की तरह भटक रहे हैं स्वामिभक्ति में ये भी किसी स्वान से या तुमसे कम नहीं हैं इनकी भी सिफारिश करो न, एक से भले दो होते हैं, अकेले की तरफ किसी का भी ध्यान कम जाता है जब दो हो जाओगे तो स्वामी भक्ति भी अधिक होगी सेवा भी अधिक होगी ।
एक आदर्श प्रस्तुत करो देश के गद्दारों के लिए, स्वान प्रवृत्ति वालों के लिए, धर्म विरोधियों के लिए संस्कृति-समाज विरोधियों के लिए । याद करो जयचंद को; आज तक लोग भूले नहीं हैं। ऐसा ही तुम्हारा नाम भी याद रखा जायेगा ।आखिर गद्दार वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का कोई तो सार्थक प्रयास करे ।क का असुर राज ख़त्म होता हैं दूसरे का आजाता है।
विचार धारा वही रहती है केवल चेहरे बदल जाते हैं। यही वो विचारधारा है; जो भारत के महापुरुषों के नाम से बगलें झांकती है, जो भारत के मानवीय मूल्यों को तोड़-मरोड़ कर केवल बुराईयों को देखती है,यही वो विचारधारा है जो भारत के सनातन सात्विक आध्यात्मिक मूल्यों के नाम पर बिदकती है। यही वो विचारधारा है जिसे भारत की वो सांस्क्रतिक विचार धारा, ढकोसला नजर आती है जिसके द्वारा भारत एक डोर में बंधा नजर आता है। इनका प्रयास उसी डोर को तोड़ने का रहा है। जातियों के नाम पर, प्रदेशों के नाम पर, सम्प्रदायों के नाम पर, समूहों के नाम पर उसी डोर को तोड़ने का प्रयास इन्होने आज तक किये हैं। इनकी साजिशों को आम आदमी नहीं समझ पाता। ये शिक्षा के क्षेत्र में,समाचारों के क्षेत्र में, समाजसेवा के क्षेत्र, में पत्रकारिता के क्षेत्र में लगभग सभी जगह हैं ।
इस विचार धारा वाले समाचार क्षेत्र के लोग अपनी और अपने विचार वालों की गलतियाँ छुपाने में लगे रहते हैं। इस समय प्रधान मंत्री ने जो अफगानिस्तान में बयान दिया है, वह भारत जैसे संप्रभु देश के प्रधान मंत्री को शोभा
“तुम धन्य हो” दिग्विजय सिंह। धन्य है तुम्हारी स्वामिभक्ति;जो स्वामी के दुत्कारने के बावजूद भी श्वान-निष्ठा नहीं छोड़ती; अपितु पुच्छ हिल्लन और बारम्बार पद चट्टन से अपने स्वामी को रिझाती रहती है। "पर एक अच्छे श्वान का एक गुण तुममे नहीं है"; वह सज्जन और दुर्जन में भेद जान लेता है और केवल दुर्जन के विरोध में ही भौंकता है, पर तुम भेद तो जानते हो लेकिन सज्जन के विरोध में भौंकते हो । पर ये भी सच है; कि अगर ये गुण तुम पा लो तो कैसे अपनी विशिष्टता सिद्ध कर पाओगे। धन्य है; तुम्हारी देश-समाज- संस्कृति,सज्जन "विरोध" के प्रति निष्ठा को। तुम्हारे जैसे दुष्ट शिरोमणि,गद्दार शिरोमणि, असुर शिरोमणि सदियों में कभी-कभी ही जन्म लेते हैं। अपना और अपने कुल-खानदान का नाम "मोटे स्याह अक्षरों में" इतिहास में लिखवा जाते हैं। कुल-वंश का गौरव तो सभी बनना चाहते हैं पर कुल कलंक बनने का साहस भी कोई एकाध ही सदियों में कर पाता है। आखिर कौन ऐसा साहस कर पाता है ; कि उसके आने वाली पीढ़ीयां गद्दारों के नाम से जानी जाएँ। वैसे तो तुम्हारे समुह (पार्टी) में एक से बढ़ कर एक "श्वान निष्ठीय आदर्श" वाले व्यक्तित्व हुए हैं और ; और वर्तमान में भी हैं,जाने क्यों उन्होंने तुम्हें अकेला छोड़ा हुआ है इसीलिए तुम जो आदर्श प्रस्तुत कर रहे हो वह धन्य है । धन्य हैं तुम्हारे माता -पिता जहाँ भी (नर्क में ही )होंगे कैसे अपने कुल कलंक पुत्र को देख रहे होंगे कि कैसे उनका पुत्र सिंह हो कर भी किस सरलता से श्वान- प्रवृत्ति को पूर्ण रूप से निभा रहा है। पिता याद कर रहे होंगे कि उनके कुल में कोई इतना बड़ा गद्दार कभी हुआ या नहीं आखिर किस से बीज धारण किया तुम्हारी माता ने; वह भी जानना चाह रहे होंगे ।
दिग्विजय सिंह ! एक और सिंह आजकल आवारा श्वान की तरह भटक रहे हैं स्वामिभक्ति में ये भी किसी स्वान से या तुमसे कम नहीं हैं इनकी भी सिफारिश करो न, एक से भले दो होते हैं, अकेले की तरफ किसी का भी ध्यान कम जाता है जब दो हो जाओगे तो स्वामी भक्ति भी अधिक होगी सेवा भी अधिक होगी ।
एक आदर्श प्रस्तुत करो देश के गद्दारों के लिए, स्वान प्रवृत्ति वालों के लिए, धर्म विरोधियों के लिए संस्कृति-समाज विरोधियों के लिए । याद करो जयचंद को; आज तक लोग भूले नहीं हैं। ऐसा ही तुम्हारा नाम भी याद रखा जायेगा ।आखिर गद्दार वंश परंपरा को आगे बढ़ाने का कोई तो सार्थक प्रयास करे ।क का असुर राज ख़त्म होता हैं दूसरे का आजाता है।
विचार धारा वही रहती है केवल चेहरे बदल जाते हैं। यही वो विचारधारा है; जो भारत के महापुरुषों के नाम से बगलें झांकती है, जो भारत के मानवीय मूल्यों को तोड़-मरोड़ कर केवल बुराईयों को देखती है,यही वो विचारधारा है जो भारत के सनातन सात्विक आध्यात्मिक मूल्यों के नाम पर बिदकती है। यही वो विचारधारा है जिसे भारत की वो सांस्क्रतिक विचार धारा, ढकोसला नजर आती है जिसके द्वारा भारत एक डोर में बंधा नजर आता है। इनका प्रयास उसी डोर को तोड़ने का रहा है। जातियों के नाम पर, प्रदेशों के नाम पर, सम्प्रदायों के नाम पर, समूहों के नाम पर उसी डोर को तोड़ने का प्रयास इन्होने आज तक किये हैं। इनकी साजिशों को आम आदमी नहीं समझ पाता। ये शिक्षा के क्षेत्र में,समाचारों के क्षेत्र में, समाजसेवा के क्षेत्र, में पत्रकारिता के क्षेत्र में लगभग सभी जगह हैं ।
इस विचार धारा वाले समाचार क्षेत्र के लोग अपनी और अपने विचार वालों की गलतियाँ छुपाने में लगे रहते हैं। इस समय प्रधान मंत्री ने जो अफगानिस्तान में बयान दिया है, वह भारत जैसे संप्रभु देश के प्रधान मंत्री को शोभा
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