आतंकवादी की गोली से वह जख्मी नहीं होते तो आज भी सीमा पर किसी मोर्चे पर डटे होते। मोर्चे पर तो यह आज भी हैं, दिल्ली में सेना मुख्यालय में बैठकर आतंकवाद के खिलाफ रणनीति तैयार करने के। भारतीय सेना में मेजर जनरल एस के राजदान पहले उदाहरण हैं, जो व्हील चेयर पर चलने के बावजूद इस पद तक पहुंचे हैं। उनकी कहानी उनकी जुबां में-
8 अक्टूबर 1994 को मेरा 40 जन्म दिन था। कश्मीर के काजीगुंड में एक दुकान पर चाय पी रहे थे। प्राइमरी हैल्थ सेंटर का कम्पाउंडर आया और बोला- आतंकवादी 14 बच्चियों और महिलाओं को अगवा कर ले गए हैं। उनमें मेरी बेटी भी है। सीनियर से अनुमति लेकर हम शाम चार बजे अपने यूनिट से निकल पड़े। तीन मंजिला मकान में आतंकी छिपे थे।
रात 9.30 बजे वहां पहुंचे। देसी घी की खुशबू आ रही थी। हाथ डालकर घर की कुंडी खोली। किचन में एक औरत ऑमलेट बना रही थी। उसे लगा, मैं भी आतंकी हूं। धीरे से बताया कि मैं सैनिक हूं।
तुम्हें बचाने आया हूं। जल्दी-जल्दी महिलाओं को बाहर निकलवाने लगा। आतंकवादियों को पता चल गया। गोलियां चलना शुरू हो गई। पहली गोली चली तो ठीक वह वक्त था जब मैं पैदा हुआ था। मैंने घर में जल रहा लैंप बुझा दिया। अंदर घुस गया, तीन आतंकी सामने थे, उन्हें मार गिराया। लेकिन एक शायद जिंदा बच गया, जैसे ही उसके पास से ऊपर जाने लगा उसने गोलियां चला दीं।
गोलियां रीढ़ की हड्डी तक तोड़ गईं। दूसरे दिन तक वहीं पड़ा रहा। हमने कुल 9 आतंकी मार गिराए थे। कश्मीर, दिल्ली और फिर पुणो में इलाज चला। चार ऑपरेशन हुए।
सालभर अस्पताल में काटा। दर्द तो आज तक नहीं गया लेकिन शारीरिक अक्षमता को कभी रुकावट नहीं बनने दिया। निराशा से दूर रहने के लिए मैंने वॉटर रेजिस्टेंट स्ट्रेटेजी (पानी की तरह बिना रुके आगे बढ़ते जाना) को मूलमंत्र बना लिया।।
स्कूल के दिनों में मथुरा गोल्फ ग्राउंड के पास एक कब्रिस्तान में बैठकर पढ़ाई करता था मैं। वहां एक मेजर जनरल की संगमरमर की कब्र थी। बचपन से उसे देखकर सेना के प्रति अजीब सा लगाव पैदा हुआ था।
कॉलेज में दोस्त के साथ सेना ज्वाइन करने को लेकर बहस हुई। दोस्त बोला ब्राह्मण हो, जाकर प्रोफेसर बनों। सैनिक बनना जाटों का काम है। यही बहस सेना में ले आई।
8 अक्टूबर 1994 को मेरा 40 जन्म दिन था। कश्मीर के काजीगुंड में एक दुकान पर चाय पी रहे थे। प्राइमरी हैल्थ सेंटर का कम्पाउंडर आया और बोला- आतंकवादी 14 बच्चियों और महिलाओं को अगवा कर ले गए हैं। उनमें मेरी बेटी भी है। सीनियर से अनुमति लेकर हम शाम चार बजे अपने यूनिट से निकल पड़े। तीन मंजिला मकान में आतंकी छिपे थे।
रात 9.30 बजे वहां पहुंचे। देसी घी की खुशबू आ रही थी। हाथ डालकर घर की कुंडी खोली। किचन में एक औरत ऑमलेट बना रही थी। उसे लगा, मैं भी आतंकी हूं। धीरे से बताया कि मैं सैनिक हूं।
तुम्हें बचाने आया हूं। जल्दी-जल्दी महिलाओं को बाहर निकलवाने लगा। आतंकवादियों को पता चल गया। गोलियां चलना शुरू हो गई। पहली गोली चली तो ठीक वह वक्त था जब मैं पैदा हुआ था। मैंने घर में जल रहा लैंप बुझा दिया। अंदर घुस गया, तीन आतंकी सामने थे, उन्हें मार गिराया। लेकिन एक शायद जिंदा बच गया, जैसे ही उसके पास से ऊपर जाने लगा उसने गोलियां चला दीं।
गोलियां रीढ़ की हड्डी तक तोड़ गईं। दूसरे दिन तक वहीं पड़ा रहा। हमने कुल 9 आतंकी मार गिराए थे। कश्मीर, दिल्ली और फिर पुणो में इलाज चला। चार ऑपरेशन हुए।
सालभर अस्पताल में काटा। दर्द तो आज तक नहीं गया लेकिन शारीरिक अक्षमता को कभी रुकावट नहीं बनने दिया। निराशा से दूर रहने के लिए मैंने वॉटर रेजिस्टेंट स्ट्रेटेजी (पानी की तरह बिना रुके आगे बढ़ते जाना) को मूलमंत्र बना लिया।।
स्कूल के दिनों में मथुरा गोल्फ ग्राउंड के पास एक कब्रिस्तान में बैठकर पढ़ाई करता था मैं। वहां एक मेजर जनरल की संगमरमर की कब्र थी। बचपन से उसे देखकर सेना के प्रति अजीब सा लगाव पैदा हुआ था।
कॉलेज में दोस्त के साथ सेना ज्वाइन करने को लेकर बहस हुई। दोस्त बोला ब्राह्मण हो, जाकर प्रोफेसर बनों। सैनिक बनना जाटों का काम है। यही बहस सेना में ले आई।
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