Friday, January 11, 2013

लोकपाल को प्रधानमंत्री, जजों, सांसदों और अधिकारियों की जांच का हक दिया गया,


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आरोप लगाया जा रहा है कि जन लोकपाल एक समानांतर सरकार बन जाएगा (क्योंकि यह सरकार के अधीन नहीं होगा) और यह हमारे संसदीय लोकतंत्र के लिए खतरा होगा। ये दोनों ही धारणाएं गलत हैं। सरकार जन लोकपाल के बावजूद ताकतवर बनी रहेगी। जन लोकपाल का काम तो सिर्फ अनुचित और भ्रष्ट गतिविधियों पर नजर रखने का होगा। हमारे देश में कई स्वतंत्र स्वायत्त संस्थाएं पहले से ही काम कर रही हैं, जैसे सुप्रीम कोर्ट, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी), मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी), मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआसी) और मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) इनमें से कुछ संस्थाओं का गठन संविधान द्वारा हुआ है, तो कुछ कानून के जरिये अस्तित्व में आई हैं। क्या ये संस्थाएं समानांतर सरकारें हैं या फिर ये संसदीय लोकतंत्र के लिए खतरा बनी हैं? नहीं। ठीक इन्हीं की तरह जन लोकपाल भी एक स्वतंत्र संस्थान होगा और यह लोकतंत्र के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्ट लोगों के लिए खतरा होगा।

जन लोकपाल के संदर्भ में एक सवाल और उठाया जा रहा है कि यह किसके प्रति जवाबदेह होगा? इसके जवाब में हमें यह देखना होगा कि ये स्वतंत्र स्वायत्त संस्थाएं किनके प्रति जवाबदेह हैं। यदि एक जज, सीएजी, सीईसी, सीआईसी या सीवीसी भ्रष्ट है, तो एक आम आदमी क्या कर सकता है? वह कुछ नहीं कर सकता। कुछ मामलों में तो भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ संसद महाभियोग की कार्रवाई कर सकती है, लेकिन ठोस और विश्वसनीय साक्ष्यों के रहते हुए पिछले 62 वर्षो में किसी के खिलाफ महाभियोग पारित नहीं हुआ।अब इसके मुकाबले जन लोकपाल विधेयक में जो जवाबदेही का स्तर है, जरा उसे देखिए। जन लोकपाल बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक जन लोकपाल सीधे नागरिकों के प्रति जिम्मेदार होगा। इस ड्राफ्ट के मुताबिक, एक सामान्य नागरिक भी जन लोकपाल के सदस्य के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में शिकायत दर्ज करा सकता है। और यदि वह सदस्य दोषी पाया जाता है, तो शीर्ष अदालत उसकी सदस्यता निरस्त कर सकती है। यदि कोई व्यक्ति गर्हित इरादे से या फिर दुर्भावना से ग्रसित होकर किसी सदस्य के खिलाफ झूठे आरोप लगाता है, तो ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार होगा कि वह शिकायतकर्ता को दंडित करे।जहां तक हम जानते हैं, देश में ऐसी कोई संस्था या पद नहीं है, जो सीधे जनता के प्रति जवाबदेह हो। लेकिन दुर्योग से सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। सरकार द्वारा ड्राफ्ट लोकपाल विधेयक के मुताबिक, लोकपाल सिर्फ सरकार के प्रति जवाबदेह होगा। केवल सरकार ही उसे उसके पद से हटाए जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। इसका मतलब साफ है कि यदि कोई लोकपाल सरकार को अपने मुफीद नहीं लगता, तो वह उसे हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय चली जाएगी। यह प्रावधान लोकपाल की स्वायत्तता को ग्रहण लगा देगा। सवाल पूछा जा सकता है कि यदि जन लोकपाल का स्टाफ भ्रष्टाचार में संलिप्त हो गया, तो क्या होगा? हमने लोकपाल की कार्यप्रणाली को भ्रष्टाचारमुक्त और पूर्ण पारदर्शी बनाने के लिए कई सुझाव दिए हैं। मसलन, एक स्वतंत्र विभाग जन लोकपाल के स्टाफ के खिलाफ शिकायतों को स्वीकार करे, एक तय समय के भीतर संबंधित स्टाफ के खिलाफ लगे आरोपों की जांच हो और यदि वह दोषी है, तो उसे तत्काल हटाया जाए, जन लोकपाल के वित्तीय खर्च कामकाज का हर वर्ष सीएजी द्वारा ऑडिट कराया जाए और इसके स्टाफ की सालाना वेतन वृद्धि एक संसदीय समिति तय करे। सरकार ने इन सभी सुझावों को खारिज कर दिया। और इस प्रकार सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल के लिए भ्रष्टाचार में संलिप्त होने की गुंजाइश सुनिश्चित हो गई है। एक भ्रष्ट लोकपाल सरकार के स्वार्थो के मुताबिक ही काम करेगा। सरकार सीबीआई के मामलों में ऐसा करती रही है। अभी हाल ही में उसने सीबीआई को सूचना का अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने का कदम उठाया है। इस तरह के कदमों से सीबीआई में भ्रष्टाचार और साथ ही उसके दुरुपयोग की आशंका भी गहरी हुई है।जन लोकपाल के खिलाफ एक आरोप यह भी लगाया जा रहा है कि यह अपने अधिकारों के मामले मेंमोंस्टरहै। ऐसा नहीं है। सिर्फ इस अधिकार के अलावा कि उसे भ्रष्ट नौकरशाहों को बर्खास्त करने की अनुशंसा करने का अधिकार हो, ऐसा कोई और अतिरिक्त अधिकार नहीं प्रस्तावित किया गया है, जो सीबीआई के पास नहीं है। यदि लोकपाल को उपयुक्त जांच करनी है, तो उसे ऐसे अधिकार देने ही होंगे। लेकिन निहित स्वार्थ वाली ताकतें नहीं चाहतीं कि एक मजबूत और प्रभावी लोकपाल अस्तित्व में आए। हमें एक मजबूत, बल्कि संतुलित लोकपाल की मांग करनी चाहिए। लेकिन सरकार इसके ठीक विपरीत लोकपाल प्रस्तुत कर रही है।क्या एक लोकपाल को यह अधिकार होना चाहिए कि वह किसी भ्रष्ट अधिकारी को बर्खास्त कर सके? हमारा सुझाव है कि जन लोकपाल की टीम की जांच पूरी हो जाने के बाद लोकपाल के एक तीन सदस्यीय पीठ में इसकी खुली सुनवाई हो और फिर यह तय किया जाए कि उस अधिकारी को हटाया जाए या नहीं। यदि आरोपी असंतुष्ट हो, तो इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील कर सकता है। इसके बरक्स सरकारी बिल में यह कहा गया है कि भ्रष्ट अधिकारी को बर्खास्त करने का अधिकार मंत्री के पास रहना चाहिए। अब तक का अनुभव यही बताता है कि मंत्री प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भ्रष्टाचार के लाभार्थी रहे हैं। और भ्रष्ट अधिकारियों को सजा देने की बजाय वे उन्हें इनाम देते रहे हैं।हाल ही में सीबीआई ने एनएचएआई के एक वरिष्ठ अधिकारी को बेहिसाब नकदी के साथ गिरफ्तार किया, लेकिन संबंधित अथॉरिटी ने उस भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ जांच तो छोड़िए, मुकदमा दर्ज करने की भी इजाजत नहीं दी। ऐसे में, हम सोच भी कैसे सकते हैं कि मंत्री भ्रष्ट अधिकारियों की बर्खास्तगी की इजाजत देंगे? आज भी मंत्रियों के पास अधिकारियों को बर्खास्त करने का अधिकार है, लेकिन पिछले 62 साल में एक भी वरिष्ठ अधिकारी किसी मंत्री द्वारा बर्खास्त नहीं किया गया। इसलिए लोकपाल के संदर्भ में सरकार का मसौदा यथास्थिति बनाए रखने वाला ही है।

आरोप यह भी मढ़ा जा रहा है कि यदि लोकपाल को प्रधानमंत्री, जजों, सांसदों और अधिकारियों की जांच का हक दिया गया, तो यह सुपरपावर बन जाएगा। यह बात गलत है। एक आयकर अधिकारी को यह अधिकार है कि वह देश के प्रधान न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, मंत्रियों सांसदों द्वारा दाखिल रिटर्न की जांच करे। उसके पास यह तक अधिकार है कि वह इन सबके विरुद्ध टैक्स लगाए आर्थिक दंड भी लगाए, तो क्या वह अधिकारी सुपरपावर बन गया? नहीं। लोकपाल तो सिर्फ इन महानुभावों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करेगा। इनकम टैक्स अधिकारी की तरह उसके पास इनके खिलाफ जुर्माना लगाने का भी अधिकार नहीं होगा। लोकपाल सिर्फ जांच करेगा और अदालतें सजा तय करेंगी।

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