""पाकिस्तान
में औसतन
प्रति दिन
४० मुसलमान
इस्लामिक आतंकवाद
की घटनाओं
में मारे
जाते हैं
पर इससे
मुसलमान आंदोलित
नहीं होते.
अफगानिस्तान में औसतन प्रतिदिन २८
मुसलमान इस्लामिक
आतंकवाद में
मारे जाते
हैं इस
पर मुसलमान
नहीं भड़कते.
भारत में
हुई आतंकवाद
की घटनाओं
पर कभी
कोई किसी
भी प्रकार
का मुसलमान
खेद व्यक्त
करता हो
या आतंकवाद
की घटना
की निंदा
करता हो
तो बताओ
? लेकिन म्यांमार
की घटना
का मुम्बई,
लखनऊ, कानपुर,इलाहाबाद में
हिंसा और
तोड़ फोड़
हो रही
है. कुल
मिला कर
बात यह
कि मुसलमान
आतंकवादी या
दंगाई जब
तक किसी
दूसरे को
मारते हैं
तब तक
शातिराना चुप्पी
है और
जब मारे
जाते हैं
तो छाती
पीटी जाती
है. भारत
में इस्लामिक
आतंकवाद से
प्रति वर्ष
इतने लोग
मरते हैं
कि जितने
किसी भी
युद्ध में
नहीं मरे
पर उसकी
निंदा करता
या सांत्वना
देता कोई
बयान कहीं
नहीं सुनाई
पड़ता,--- तब कहाँ चले जाते
हैं मुल्क
के तरक्की
पसंद, अमन
पसंद मुसलमान
? है कोई
अमन पसंद
मुसलमान ? है कोई राष्ट्र प्रेमी
मुसलमान ? ---तो बोलते क्यों नहीं
? अगर ऐसे
में भी
अमन पसंद
मुसलमानों की चुप्पी रही तो
मुल्क तो
यह मान
ही लेगा
कि मुसलमान
केवल साम्प्रदायिक
ही नहीं
हैं बल्कि
दहशतगर्द दंगाईयों
के साथ
हैं और
भारत राष्ट्र
को तोड़ने
की साजिश
में मूक
या मुखर
हो कर
शामिल हैं.
कश्मीर के
विस्थापित पंडितों के लिए कभी
किसी मुसलमान
ने आवाज़
उठाई हो
तो बताओ
? औरंगजेब के द्वारा हिन्दू मूर्ति
/ मंदिर तोड़ना
जायज था,
लखनऊ में
अलविदा की
नवाज़ के
बाद बुद्धा
पार्क में
भगवान् बुद्ध
की और
महावीर भगवान्
की मूर्ति
तोड़ना जायज
है, बामियान
में तालिबान
द्वारा बुध
प्रतिमाएं तोड़ना जायज है तो
फिर बाबरी
मस्जिद तोड़ा
जाना क्यों
नाजायज है
? जम्मू -कश्मीर
में इस्लामिक
आतंकवादीयों ने दर्जनों मंदिर जला
डाले कहीं
से किसी
मुसलमान के
मुंह से
साम्प्रदायिक सौहार्द के स्वर नहीं
फूटे,--क्यों
? लेकिन बाबरी
मस्जिद के
लिए श्यापा
आज तक
जारी है
जबकि उसी
दौर में
हजरत मुहम्मद
साहब की
बनवाई हुई
मस्जिद चरार
-ए-शरीफ
को इस्लामिक
आतंकवादी मस्तगुल
ने जला
कर राख
कर दिया
तो कोई
बात नहीं.
कुल मिला
कर अगर
मामला इस्लामिक
आतंकवाद का
है तो
मुसलमान उसकी
मुखर या
मूक पक्षधरता
करते हैं
और जब
कहीं मारे
जाते हैं
तो श्यापा
करते हैं
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