Friday, January 11, 2013

तुमने देखा है क्या हिन्दोस्तान कैसा है, भूखे नंगों से भरा गुलसितान कैसा है;


तुमने देखा है क्या हिन्दोस्तान कैसा है,
भूखे नंगों से भरा गुलसितान कैसा है;
कभी हुए हो रूबरू ज़मीन से भी क्या,
बहुत पता है तुम्हें आसमान कैसा है;
जिसके पिंजर महल की नींव में भरे तुमने,
कभी देखा गरीब का मकान कैसा है;
मसर्रतों से भरा है जहां तुम्हारा पर,
कभी सोचा है दूसरा जहान कैसा है;
बड़ा वज़न है तुम्हारी जुबां का दुनिया में,
क्या जानते हो हाल--बेजुबान कैसा है ?
कुछ तो दुनिया का तौर है यारों
कुछ मेरा भी मिजाज़ ऐसा है;
बात दिल की ज़बां पे मत लाओ,
मेरे घर का रिवाज़ ऐसा है;
जिसे कह दूं तो ज़लज़ला आये
मेरे सीने में राज़ ऐसा है;
जो नवाजिश में ज़ख्म देता है,
मेरा ज़र्रानवाज़ ऐसा है;
मुझे उसमें कमी नहीं दिखती,
कुछ मेरा इम्तियाज़ ऐसा है......

कोई उम्मीद रही उनसे
इसलिए कोई गम नहीं होता;
इश्क शम्मा नहीं है शोला है,
ये हवाओं से कम नहीं होता;
उनका दिल-दिल नहीं है सेहरा है,
मेरे अश्कों से नाम नहीं होता;
मैंने देखा है दौर--ग़ुरबत में,
कोई भी हमकदम नहीं होता;
बेच देता ज़मीर गर अपना,
आज मुझ पर सितम नहीं होता....

मैं किनके साथ हूँ किनसे है मेरा राबता हर दिन,
यहाँ कितने ही चेहरों से है मेरा वास्ता हर दिन;
ना जाने कौन अपना है ना जाने कौन है दुश्मन,
इन्ही चेहरों में हूँ अपना पराया ढूंढता हर दिन;
मैं अक्सर सोचता हूँ कौन सी मंजिल को जाता है,
किया करता हूँ तय खामोश जो मैं रास्ता हर दिन;
मैं छोटा हूँ मुझे मेरे खुदा छोटा ही रहने दे,
बड़ों के दिल की गहराई का लगता है पता हर दिन;
ये माना साफगोई है खता इस दौर में लेकिन,
खुदाया माफ़ करना हो ही जाती है खता हर दिन.....

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